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कविता

ता दिन अखिल खलभलैं खल खलक में

भूषण


ता दिन अखिल खलभलैं खल खलक में,
जा दिन सिवाजी गाजी नेक करखत हैं।
सुनत नगारे के अगा्रे तजि अरिन के,
दारगन भाजत न दार परखत हैं।
छूटे बार बार छूटे बारन ते लाल देखि,
भूषण सुकवि बरनत हरखत हैं।
क्यों न उत्पात बैरिन के नैरिन में,
कारे घन उमरि अंगारे बरखत हैं।।


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